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________________ स्कार कर बोली कि हे भगवान ! आप सर्वज्ञ हो मेरी भक्तिको समय समय जानते हों परन्तु गौतमादि छदमस्थ मुनियोंको हम हमारी भक्तिपूर्वक बत्तीस प्रकारका नाटक बतलावेगी. भगवानने मौन रखीथी। भगवानने निषेध न करने से बहुपुत्तीयादेवी एकान्त जाके बैक्रिय समुद्घातकर जीमणी भूजासे एकसो आठ देवकुमार डाबी भुजासे एकसो आठ देवकुमारी और भी बालक रूपवाले अनेक देवदेवी वैक्रिय बनाये तथा ४९ जातिके वाजींत्र और उन्होंके वजानेवाला देवदेवी बनाके गौतमादि मुनियों के आगे बतीस प्रकारका नाटककर अपना भक्तिभाव दर्शाया, तत्पश्चात् अपनी सर्व ऋद्धिको शरीरमें प्रवेशकर भगवानको वन्दन नमस्कारकर अपने स्थान गमन करती हुइ। गौतमस्वामिने प्रश्न किया कि हे भगवान! यह बहुपुत्तीया. देवी इतनि ऋद्धि कहांसे निकाली और कहां प्रवेश करी । भगवानने उत्तर दिया कि हे गौतम! यहां वैक्रिय शरीरका महत्व है कि जेसे कुडागशालामें मनुष्य प्रवेश भी करसक्ते है और निकल भी सक्ते है । यह द्रष्टान्त रायपसेनीसूत्रमें सविस्तार कहा गया है। गौतमस्वामीने औरभी प्रश्न किया कि हे करूणासिन्धु ! इस बहुपुत्तीयादेवीने पुर्व भवमें एसा क्या पुन्य उपार्जन कियाथा कि जिस्के जरिये इतनि ऋद्धि प्राप्त हुई है। भगवानने फरमाया कि हे गौतम ! इस जम्बुद्विपके भरतक्षेत्रमें बनारसी नगरीथी, उस नगरीके बाहार आम्रशाल नामकाउद्यान था, बनारसी नगरीके अन्दर भद्र नामका एक बडाही धनाव्य सेठ (सार्थवाह) निवास करता था, उस भद्र सेठके सुभद्रा नाम
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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