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________________ १५४ छोड दे. तब तुमारी सुन्दर प्रवृजा हो सकती है। देवने अपने ज्ञानसे सामलके अच्छे प्रणाम जान वन्दन नमस्कारकर निजस्थानको गमन करता हुवा। सोमलने पूर्व ग्रहन किये हुवे श्रावकव्रतोंको पुनः स्वीकारकर अपनि श्रद्धाको मजबुत बनाके, पार्श्वप्रभुसे ग्रहन किया हुवा तत्वज्ञानमे रमणता करताहुवा विचरने लगा। सोमल श्रावक बहुतसे चोत्थ छठ अठम अर्धमास मासखमणकी तपश्चर्या करता हुवा. बहुत कालतक श्रावकवत पालता हुवा अन्तिम आधा मास (१५ दिन) का अनसन किया परन्तु पहले जो मिथ्यात्वकी क्रिया करीथी उसकी आलोचना न करी, प्रायश्चित नलिया. विराधिक अवस्था में कालकर महाशुक्र वैमान उत्पात सभाकि देवशय्याम अंगुलके असंख्यात भागकि अवगाहनामे उत्पन्न हुवा, अन्तरमहुर्तमें पांचों पर्याप्तीको पूर्णकर युवक वय धारण करता हुवा देवभवका अनुभव करने लगा। हे गौतम! यह महाशुक्र नामका गृह देवकों जो ऋद्धि ज्योती क्रान्ती मीली है यावत् उपभोगमै आइ है इसका मूल कारण पूर्व भवमें वीतरागकि आज्ञा संयुक्त श्रावकवत पालाथा। यपि श्रावककी जघन्य सौधर्म देवलोक, उत्कृष्ट अच्युत देवलोककि गति है परन्तु सोमलने आलोचना न करनेसे ज्योतीषी देवो में उत्पन्न हुवा है । परन्तु यहांसे चवके महाविदेह क्षेत्रमें ‘दृढपइना' कि माफीक मोक्ष जावेगा इति तीसराध्ययन समाप्तम् । (४) अध्ययन चोथा-राजग्रहनगर के गुणशीलोद्यानमें भगवान वीरप्रभुका आगमन हुवा. राजा श्रेणकादि पौरजन भगवानको वन्दन करनेको गये। - उस समय च्यार हजार सामानिकदेव सोला हजार आत्म
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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