SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५३ के निचे पूर्वक रीती निवास कीया, देवता आया पूर्ववत् दोय तीनवार कहके अपने स्थान चलागया. एवं तीसरे दिन अशोकवृक्ष के निचे वहांभी देवताने दोतीनवार कहा, चोथेदिन. वडवृक्ष के निचे निवास किया वहांभी देव आया दोतीन दफे कहा. परन्तु सोमहतो मौनमेंही रहा. देव अपने स्थान चला गया। पांचमेदिन उम्बरवृक्ष के निचे सोमलने निवास कीया सब क्रिया पहेले दिन के माफीक करी । रात्री समय देवता आया और बोला कि हे सोमल ! तेरी प्रवृजा हे सो दुष्ट प्रवृज्जा है एसा दोय तीनवार कहा. इसपर सोमलमहाणऋषि विचार कियाकि, यह कोन है और feared मेरी उत्तम तापसी प्रवृज्जाको दुष्ट बतलाता है ? ared मुझे पुच्छना चाहिये. सोमल० उस देवप्रते पुच्छाकि तुम मेरी उत्तम प्रवृजाको दुष्ट क्यों कहते हो ? उत्तरमे देवता जबाब दिया कि हे सोमल. पेस्तर तुमने पार्श्वनाथस्वामिके समिप श्राand व्रत धारण कियाथा. बाद में साधुवोंके न आनेसे मिथ्याFat लोकोंकि संगतकर मिथ्यात्वी बन यात्रत् यह तापसी दीक्षा ले अज्ञान कष्टकर रहा है तो इसमे तुमकोक्या फायदा है तु. साधु नाम धरा के अनन्तजीवों संयुक्त कन्द मूलादिका भक्षण करते. अग्नि जलके आरंभ करते. वास्ते तुमारी यह अज्ञानम प्रवृजा दुष्टप्रवृजा है । सोमल देवताका वचन सुनके बोलाकि अब मेरी प्रवृजा केसे अच्छी हो सकता है, अर्थात् मेरा आत्मकल्याण केसे होसकता है। देवने कहा कि हे सोमल अगर तुं तेरा आत्मकल्याण करना . चाहता है तो जो पूर्व पार्श्वप्रभुकेपास श्रावकके बारह व्रत धारण किये थे. उसको अबी भि पालन करो और इस दुगी कर्तव्यको
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy