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________________ १३९ भगवान् वीरप्रभुने उस विस्तारवाळी परिषदाकों विचित्र प्रकार से धर्मदेशना सुनाइ, मौख्य यह उपदेश दीयाथा कि हे भव्य जीवो! इस घोर संसारके अन्दर परीभ्रमन करते हुवे प्राणीयोंकों मनुष्यजन्मादि सामग्री मीलना दुर्लभ्य है अगर कीसी पुन्योदय से मील भी जावे तो उसको सफल करना अति दुर्लभ्य eared यथाशक्ति व्रत प्रत्याख्यान कर अपनि आत्माको निर्मल बनाना चाहिये | इत्यादि परिषदा वीरवाणीका अमृतपान कर यथाशक्ति त्याग वैराग धारण कर भगवानको वन्दन नमस्कार कर अपने अपने स्थानपर गमन करने लगे । " पद्मकुमार भगवानकि देशना श्रवणकर परम वैरागको प्राप्त हुवा. उठके भगवानकों वन्दन नमस्कार कर बोलाकि हे भगवान आपने फरमाया वह सत्य है मैं मेरे मातापितावकों पुच्छ आपक समिप दीक्षा लेउंगा, भगवानने फरमाया 66 जहा सुखं जैसे गौतम कुँमर ने मातापितावोंसे आज्ञा ले दीक्षा लोथी इसी माफीक पद्मकुम भी मातापितावोंसे नम्रता पूर्वका आज्ञा प्राप्त करी, मातापितावोंने बडाही महोत्सव कर पद्मकुमारकों भगवान के पास दीक्षा दरादी । पद्म अनगार इर्यासमिति यावत् साधु बन गया. तथा रूपके स्थविरोंके पास विनय भक्ति कर इग्यारा अङ्गका अध्ययन कीया. ओरभी अनेक प्रकार कि तपश्चर्या कर अपने शरीtat खदककी माफक कृष वना दीया. अन्तिम एक मासका अनन कर समाधि पूर्वक कालकर प्रथम सौधर्म देवलोक में दोय araduate स्थितिवाला 'देवता हुवा. वह देवतोंके सुखोंका १ देवता शय्या में उत्पन्न होते है उस समय अंगुलके असंख्यातमें भाग प्रमाण अवगाहना होती है । अन्तर महुर्तमें आहार पर्याप्ती, शरीर पर्याप्ती, इन्द्रिय पर्याप्ती, श्वासोश्वास पर्याप्ती, भाषा और मनपर्याप्ती साथही में बान्धते है वास्ते शास्त्रकारोंनें
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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