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________________ यहमेरे तपच्चर्याका प्रभाव है, उस औषधिके प्रयोगसे साधुकों टटी और उलटी इतनी होगइ कि अपना होश भुलगया, तब वेश्याने उस साधुकि हीफाजितकर सचैतनकिया.साधुउसका उपकार मानके बोलाकि तेरे कुच्छ कामदोतो मुझे कहे, तेरे उपकार कावदला देउ । वैश्या बोलीके चलीये । वस । राजा कोणके पास ले आइ, कोणकने कहाकि हे मुनि इस नगरीका भंग करा दो। वह साधु वहांसे नगरीमें गया नगरीके लोक १२ वर्ष हो जानेसे बहुत व्याकुल हो रहे थे. उस निमत्तीयाका रूप धारण करनेवाले साधुसे लोकोंने पुच्छा कि हे साधु इस नगरीको सुख कब होगा । उत्तर दिया कि यह मुनि सुव्रतस्वामिका स्थुभको गिरा दोगे तव तुमकों सुख होगा । सुखाभिलाषी लोकोंने उस स्थुभको गिरा दीया. तब राजा कोणकने उस नगरीका भंग करना प्रारंभ कर दीया, मुनि अपना फर्ज अदा कर वहांसे चलधरा । यह वात देख चेटकराजा एक कुँवाके अन्दर पड आपघात करना शरू कीया था, परन्तु भुवनपति देव उसको अपने भुवनमें ले गया वस । चेटकराजाने वहां पर ही अनसन कर देवगति को प्राप्त हो गये। राजा कोणक निराश हो के चम्पानगरी चला गया, यह संसारकि स्थिति है कहां हार, कहां हस्ती, कहां वहलकुमर, कहां चेटकराजा, कहां कोणक, कहां पद्मावती राणी, क्रोडों मनुष्यों की हत्या होने पर भी कीस वस्तुका लाभ उठाया ? इस लिये ही महान पुरुषोंने इस संसारका परित्याग कर योगवृत्ति स्त्रीकार करी है। चम्पानगरी आनेके बाद कोणक राजाको भगवान वीर प्रभुका दर्शन हुवा और भगवानका उपदेशसे कोणकको इतना तों
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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