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श्री अनुत्तरोववाइ सूत्रका संक्षिप्त सार.
(प्रथम वर्गके दश अध्ययन है.)
(१) पहला अध्ययन-राजगृह नगर गुणशीलोद्यान श्रेणिक राजा चेलनाराणी इसका विस्तार अर्थ गौतमकुमारके अध्ययन से समझना।
श्रेणकराजा के धारणी नामकी राणीकों सिंह स्वप्न सूचित आली नामक पुत्रका जन्म हुवा महोत्सवके साथ पांच धायांसे पालीत आठ वर्षका होने के बाद कलाचार्यसे बहुत्तर कलाभ्यास यावत् युवक अवस्था होने पर बडे बडे आठ राजावाँकी आठ कन्यावों के साथ जालीकुमारका विवाह कर दीया दत दायजो पूर्ववत् समझना । जालीकुमार पूर्व संचित्त पुन्योदय आठ अन्तेउरके साथ देवतावों कि माफीक सुखोंका अनुभव कर रहा था। __ भगवान धीरप्रभुका आगमन राजादि वन्दन करने को पूर्ववत् तथा-जालीकुमर भी वन्दनकों गया देशना श्रवण कर आठ अन्तेवर और संसारका त्याग कर माता-पिताकी आज्ञा ले वडे ही महोत्सवके साथ भगवान वीरप्रभुके पास दीक्षा ग्रहण करी, विनयभक्तिसे इग्यारा अंगका ज्ञानाभ्यास कर चोत्थ छठ अठमादि तपस्या करते हुवे गुणरत्न समत्सर तपकर अपनि आत्माको उज्वल बनाते हुवे अन्तिम भगवानको आज्ञा ले साधु साध्वीयोंसे क्षमत्क्षामणा कर स्थिवर भगवानके साथे विपुलगिरि पर्वत पर अनसन किया सर्व सोला वर्षकी दीक्षा पाली। एक मास