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सोला उपवास करे, पारणो कर पन्दरा उपवास करे, एवं चौदा तेरह बारह इग्यार दश नव आठ सात छे पांच चार तीन दोय ओर पारणो कर एक उपवास करे। बादमे आठ छठ करे पारणो कर तीन उपवास करे, पारणो कर छठ करे, ओर पारणो कर एक उपवास करे, यह प्रथम ओली हुइ अर्थात् इस तपके हारकी पहेली लड हुइ इसको एक वर्ष तीन मास और बावीस दिन लगते है जिसमें ३८४ दिन तपस्या और ८८ पारणा होता है पारणे पांचों विगइ सहीत भी कर सकते है। इसी माफीक दुसरी ओली ( हारकीलड ) करी थी परन्तु पारणा विगह वर्ज करते थे। इसी माफीक तीसरी ओली परन्तु पारणा लेपालेप वर्ज करते थे । एवं चोथी ओली परन्तु पारणे आंबिल करते थे। यह तपरुपी हारको च्यार लडकों पांच वर्ष दोय मास अठ्ठावीस दिन हुवे जिसमें च्यार वर्ष तीन मास छे दिन तपस्याके और इग्यार मास बावीस दिन पारणेके एसे घऔर तप करते हुवे काली साध्वीका शरीर सुक्के लुरूरवे भुरूखे हो गया था चलते हुवे शरीरके हाड खडखड शब्दसे वाजने लग गया अर्थात् शरीर ब्रीलकुल कृष बन गया तथापि आत्मशक्ति बहुत ही प्रकाशमान थी। गुरुणीजिकी आज्ञासे अन्तिम एक मासका अनशन कर केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष गई इति ।
इसी माफीक दुसरा अध्ययन सुकालीराणीका है परन्तु रत्नावली तपके स्थान कनकावली तप कीया था रत्नावली और कनकावली तपमे इतना विशेष है कि रत्नावलीतपमे दोय स्थान पर आठ आठ छठ एक स्थानपर चौतीस छठ किया था वहां
कनकावली तपमे अठम तप कीया है वास्ते तपकाल पंच वर्ष • नष मास और अटारा दिन लगा है शेष कालीराणीकी माफीक कर्म क्षय कर केवलज्ञान प्राप्त हो मोक्ष गई।२।