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________________ ८२ वृद्ध कहने लगे कि अहो। इस पापीने मेरे पिताको मारा था. कोइ कहते है कि मेरी माताको मारी थी । कोइ कहते है कि मेरे भाइ बहेन औरत पुत्र पुत्री और सगे-सम्बन्धी ओकों मारा था इसीसे कोइ आक्रोष वचन तो कोइ हीलना पथरोंसे मारना तर्जना ताडना आदि दे रहे थे । परन्तु अर्जुन मुनिने लगार मात्र भी उन्हों पर द्वेष नहीं कीया मुनिने विचारा कि मैंने तो इन्होंके संबन्धीयोंके प्राणोंका नाश कीया है तो यह तो मेरेको गालीगुप्ता ही दे रहे है । इत्यादि आत्मभावनासे अपने बन्धे हुवे कर्मोंको सम्यक् प्रकार से सहन करता हुवा कर्मशत्रुओंका पराजय कर रहा था । अर्जुन मुनिको आहार मीले तो पाणी न मीले, पाणी मीले तो आहार न मीले । तथापि मुनिश्री किंचित् भी दीनपणा नही लाता था वह आहारपाणी भगवानको दीखाके अमूर्छितपणे कायाको भाडा देता था, जैसे सर्प बीलके अन्दर प्रवेश करता है इसी माफीक मुनि आहार करते थे। एसेही हमेशांके लीये छठर पारणा होता था । एक समय भगवान राजगृह नगरसे विहार कर अन्य जनपद देशमें गमन करते हुवे । अर्जुनमुनि इस माफीक क्षमा सही घोर तपश्चर्या करते हुवे छ मास दीक्षा पाली जिसमें शरीर को पुर्णतया जर्जरित कर दीया जेसे खंदकमुनिकी माफीक । अन्तिम आधा मास अर्थात् पन्दरा दीनका अनशन कर कर्मोंसे विमुक्त हो अव्याबाघ शाश्वत सुखोंमें विराजमान हो गये मोक्ष पधार गये इति । चोथा अध्ययन - राजगृह नगर गुणशीलोद्यान श्रेणीक राजा चेलना राणी । उसी नगरमें कासव नामका गाथापति बडाही धनाढ्य वसता था । भगवान पधारे मकाईकी माफिक दीक्षा ले
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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