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________________ साहिबीकाधाणी आखीर उसी स्थानमें जाउंगा। एसा आर्तध्यान कर रहा था। एसा आर्तध्यान करता हुवा कृष्णको देखके भगवान बोल कि हे कृष्ण तुं आर्तध्यान मत कर तुम त्रीजी पृथ्वीमें उज्वल बेदना सहन कर अन्तर रहीत वहांसे नीकलके इसी जम्बुद्वीपक भरतक्षेत्रकी आवती उत्सर्पिणीमें पुंड नामका जिनपद देशमै सत्यद्वारा नगरीमें 'बारहवा अमाम नामका तीर्थकर होगा। वहां बहुत काल केवलपर्याय पाल मोक्षमें जावेगा। कृष्ण नरेश्वर भगवानका यह वचन श्रवण कर अत्यंत हर्ष। संतोषको प्राप्त हो खुशीका सिंहनाद कर हाथलसे गर्जना करता हुवा विचार करा कि में आवती उत्सर्पिणीमें तीर्थंकर होउंगा तो बीचारी नरकवेदना कोनसी गीनतीमें है। सहर्ष भगवन्तको वन्दन नमस्कार कर अपने हस्ती पर आरूढ हो वहां से चलके अपने स्थान पर आया सिंहासन पर विराजमान हो आज्ञाकारी पुरुषोंको बुलवाके आदेश कीया कि तुम जावे । मारिका नगरीका दोय तीन चार तथा बहुतसा रस्ता एकत्र मीले यहां पर उदघोषणा करो कि यह द्वारिका नगरी प्रत्यक्ष देवलोक सरखी है वह मदिरा अग्नि और द्विपायन के प्रयोगसे विनाश होगा वास्ते जो राजा युमराजा शेठ इभशेठ सेनापति सावत्यवहा आदि तथा मेरी राणीयों कुमार कुमारीयों अगर भगवान नेमिनाथजी पासे दीक्षा ले उन्होंको कृष्ण महाराजकी आज्ञा है अगर कीसीको कोइ प्रकारकी सहायताकी अपेक्षा हो तो कृष्ण महाराज करेगा पीछेले कुटुम्बका संरक्षण करना हो तो १ वसुदेव हंडादि ग्रन्थों में कृष्णका ३ भव तथा ५ भव भी लीखा है परन्तु यहां तो अन्तरा रहीत नीकलके तीर्थकर होना लिखा है। नत्वंकेवलीगम्य । . •
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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