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________________ सुकुमाल दीक्षा ले महाकाल स्मशानमे ध्यान धरा वहां एक पुरुष उन्ही मुनिकों सहायता अर्थात् शिरपर अग्नि रख देणेसे मोक्ष गया. कृष्ण बोलाकि हे भगवान उन्ही पुरुषने केसे सहायता दी। भगवानने कहाकि हे कृष्ण! जेसे तु मेरे प्रति बन्दनकों आ राहा था रहस्तेमे वृद्ध पुरुषको साहिता दे के सुखी कर दीया था इसी माफीक गजसुखमालकों भी सुखी कर दीया है। हे भगवान् एसा कोन पुन्यहीन कालीचौदसका जन्मा हुत्रा है कि मेरा लघु बांधवकों अकाल मृत्युधर्म प्राप्त करा दीया अब में उन्ही पुरुषको केसे जान सकु । भगवानने कहा हे कृष्ण तुं द्वारामतीमें प्रवेश करेगा उस समय वह पुरुष तेरे सामने आते ही भयभ्रांत होके धरतीपर पडके मृत्यु पामेगा उसको तुं समजना कि यह गजसुखमालमुनिकों साज देनेवाला है। भगवानकों वन्दनकर कृष्ण हस्तीपर आरूढ हो नगरीमें जाते समय भाइकी चिंताक मारे राजरहस्तेको छोडके दुसरे रहस्ते जा रहाथा । इधर मोमल ब्राह्मणने विचारा कि श्रीकृष्ण भगवानके पास गये है और भगवान तो सर्व जाणे हे मेरा नाम बतानेपर नजाने श्री कृष्ण मुजे कीस कुमौत मारेगा तोमुझे यहांले भाग जाना ठीक है यहभी राजरहस्ता छोडके उन्ही रहस्ते आया कि जहांसे श्रीकृष्ण जा रहाथा । श्री कृष्णको देखते ही भयभ्रांत हो धरतीपर पडके मृत्यु धर्मके शरण हो गया श्री कृष्णने जानलियाकि यह दुष्ट मेरे भाइको अकाल मृत्युका साहाज दीया है फीर श्रीकृष्णने उन्ही सोमलके शरीरकी बहुत दुर्दशा कर अपने स्थानपर गमन करता · हुधा । इति तीजा वर्गका अष्टमा गजसुकुमालमुनिका अध्ययन समाप्तम्।
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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