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________________ है । आखीरमें श्री कृष्ण तथा देवकी माताने कहा कि है लालजी अगर तुमारा एसाही इरादा हो तो तुम एक दिनका राज्यलक्ष्मी को स्वीकार कर हमारा मनोरथको पुरण करो। गजसुकुमालने मौन रखी । बडे ही आडम्बरसे राज्याभिषेक करके श्रीकृष्ण बोला कि. हे भ्रात आपक्या इच्छते है ? आदेश दो गजसुकमालने कहा कि लक्ष्मीके भंडारसे तीन लक्ष सोनइया नीकालके दोलक्षके रजीहरण पात्रे और एक लक्ष हजमको दे दीक्षायोग हजाम करायो । कृष्ण नरेश्वरने महाबलकी माफीक बड़ा भारी महोत्सव करावं नेमिनाथजीके पास गजसुकुमालको दीक्षा दिरा दी। गजसुखमाल मुनि इर्यासमिति यावत् गुप्त ब्रह्मचर्य पालन करने लगा । उसी दिन गजसुकुमाल मुनि भगवानको वन्दन कर बोला कि हे सर्वज्ञः आपकी आज्ञा हो तो में महाकाल नामके स्मशानमें जाके ध्यान करुं। भगवानने कहा “जहासुखं" भगवानको वन्दन कर स्मशानमें जाके भूमिका प्रतिलेखन कर शरीरको किंचित् नमार्क साधुकी बारहवी प्रतिमा धारण कर ध्यान करने लग गया । इधर सोमल नामका ब्राह्मण जो गजसुकुमालजीके सुसग था वह विवाहके लिये समाधिके काष्टतृण दुर्वादि लानेको नगरी बाहार पेहला गया था सर्व सामग्री लेके पीछा आ रहाथा वह महाकाल स्मशानके पाससे जाता हुवा गजसुकुमाल मुनिकों देखा ( उस बखत श्याम (संजा) काल हो रहाथा) देखते ही पूर्व भवका वैर स्मरणमें होते ही क्रोधातुर हो बोला कि भो गजसुकुमाल! हीणपुन्या अंधारी चवदसके जन्मा हुवा आज तेरा मृत्यु आया है कि मेरी पुत्री सोमाकों विनोही दुषण त्यागन कर तुं शिरको मुंडाके यहां ध्यान किरता है एसा वचन बोलके दिशा. चलोकन कर सरस मट्टी लाके मुनिके शिरपर पाल बाधी मानोके
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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