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कर्म न बान्धे । कारण चरम मोहनियकर्म दशचे गुणस्थानतक वेदता है और मोहनिय कर्मका बन्ध नवमा गुणस्थान तक है अर्थात् दशवा गुणस्थानमें मोहनिय । कर्मका बन्ध नहीं है वास्ते चरम मोहनियकर्म वेदने वाला मोहनियकर्म नहीं बान्धता है।
(४) प्रश्न-हे भगवान । इस संसारके अंदर असंयति यावत एकान्त मोहनिद्रामें सुत्ता हुंचा जीव अज्ञानके प्रेरणासे बाहुल. तापेक्षा त्रप्स प्राणी जीवोंकि घात करनेवाले नारकीमे जाते है ?
(उत्तर) हों गौतम- जो पूर्वक्त जीव वसपाणीयोंकि घात करनेवाला बाहुलतापक्षे नरकमें ही जाते है । कारण त्रस प्राणी जीवोंकि घात करने वालों के परिणाम महान रौद्र रहते है जिसमें भी असंयती यावत एकान्त मोह निद्रामें सुने वालोका तो केहना ही क्या । वास्ते वह नरक में ही जाता है।
(५) प्रश्न-है सर्वज्ञ इस संसारके अंदर जो भीव असंयती अवती प्रत्याख्यान कर पापको नहीं रोका हो वह जीव यहांसे : मरके देवतावोंमें भी जा सका है।
(उ) हाँ गौतम एसे जीव कितनेक देवतावोंमें जा भी सके है । और कितनेक जीव देवतोंमें नहीं भी जाते हैं। .
तर्क हे भगवान इसका क्या कारण है।
समाधान-है गौतम । एसे भी जीव होते है कि .. (१)ग्राम-जहांपर स्वरूप वस्ती हो । हेमला पेमला मूल धूला एसी हलकी भाषा हो जब ज्वारादिका खाना हो । बुद्धिवान भोकोंकि बुद्धि मलीन होनाती हो. इत्यादि उन्हों को ग्राम कहते है