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________________ मन्धका नाम औरतोंकि वेणी पर ही पाये जाते थे। वह नगरी के लोक सदैवके लिये प्रमुदित चित्तसे कामअर्थधर्म मोक्ष इन्ही च्यारों कार्य में पुरुषार्थ करते हुवे आनन्दपुर्वक नगरीकी शोभामें वृद्रि करते थे। द्वारकानगरी के बाहार पूर्व और उत्तर दिशाके मध्य भाग इशानकोनमें सिखर टुंक गुफावों मेखलावों कन्दरों निझरणा और अनेक वृक्षलतावोंसे सुशोभनिक रेवन्तगिरि नामका पर्वत था। द्वारकानगरी और रेवन्तगिरि पर्वत के विचमें अनेक कुँवे वापी सर द्रह और चम्पा, चमेली, केतकि, मोगरा, गुलाब, जाइ, जुइ, हीना, अनार, दाडिम, द्राक्ष, खजुर, नारंगी, नाग पुनागादि वृक्ष तथा शामलता अशोकलता चम्पकलता और भी गुच्छा गुल्म वेल्लि तृण आदि लक्ष्मीसे अपनी छटाकों दीखाते हुवा. भोगी पुरुषों को विलास और योगिपुरुषोंको ज्ञान ध्यान करने योग्य मानो मेरूके दूसरा वनकि माफीक 'नन्दन' वन नामका उद्यान था वह छहों रुतुके फल-फूलके लिये बडा ही उदार-दा तार था। . उसी नन्दनवनोद्यानमें बहुतसे देवता देवीयों विद्याधर और मनुष्यलोक अपनी अरतीका अन्त कर रतिके साथ रममता करते थे। - उसी उद्यानके एक प्रदेशमें अच्छे सुन्दर विशाल अनेक स्थानोपर तोरण, रंभासी मनोहर पुतलोयोंसे मंडित सुरप्पीय यक्षका यक्षायतन था । वह सुरप्पीय यक्ष भी चीरकालका पुराणा था बहुतसे लोकोंके वन्दन पुजन करने योग्य था अगर भक्तिपूर्वक जो उसीका स्मरण करते थे उन्होंके मनोकामना पूर्ण कर अच्छी
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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