SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४० भोग नही भोगवते हो । एमा वचन सुनके महाशतक रेवंतीके वचनोंको आदरसत्कार नहीं दीया और बलाभी नही और अच्छा भी नही जाना, मौन कर अपनी आत्मरमणतामें ही रमण करने लगा। कारण यह सर्व कर्मो की विटम्बना है अज्ञानके जरिये जीव क्या क्या नहीं करता है सर्व कुच्छ करता है। रेवंतीने दो तीन बार कहा परन्तु महाशतकने बीलकुल आदर नही दीया वास्ते रेवंती अपने स्थान पर चली गई। महाशतकने श्रावककि इग्यारा प्रतिमा बहन करने में साढा पांच वर्ष तक घोर तपश्चर्या कर अपने शरीरको सुके भुखे लुखे बना दीया अन्तिम आलोचना कर अनशन कर दीया । अनशनके अन्दर शुभाध्यवशाया विशुद्ध परिमाण प्रशस्थ लेश्या होनेसे महाशतकको अवधि ज्ञानोत्पन्न हुवा। सो पूर्व पश्चिम और दक्षिण दिशामें हजार हजार योजन और उत्तर दिशामें चुल हेमवन्त पर्वत उर्ध्व सौधर्म देवलोक अधी प्रथम रत्नप्रभा नरकका लोलुच नामका पाथडाकि चौरासी हजार वर्षोंकि स्थिति तकके क्षेत्रकों देखने लगा। ___ रेवंती और भी उन्मत होके महाशतक श्रावक अनशन करा था, वहां पर आइ और भी एक दो तीन वार असभ्य भाषासे भोग आमन्त्रण करी। उन्ही समय महाशतकको क्रोध आया और अवधिज्ञानसे देखके बोलाकि अरे रेवंती! तुं आजसे सात अहो. रात्रीमें अलसके रोगके जरिये आर्तरौद्र ध्यानसे असमाधि काल करके प्रथम रत्नप्रभा नरकके लोलुच नामके पात्थडे में चौरासी हजार वर्षोंकि स्थितिवाले नैरियेपने उत्पन्न होगी। यह वचन सुनके रेवंतीको बडा ही भय हुवा त्रास पामी उद्वेग प्राप्त हुवा विचार हुवा कि यह महाशतक मेरे पर कुपित हुवा है न
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy