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एकेक वर्ग गायोंका मैं अपने कबजे कर मेरा भरतारके साथ मनुप्य संबन्धी कामभोग अपने स्वतंत्रतासे भोगवती हुइ रहुं।
_ एसा विचार कर छे शोक्योंको शस्त्र प्रयोगसे और छ शोक्योंको विष प्रयोगसे मृत्युके धामपर पहुंचा दी अर्थात् मार डाली। और उन्हाँका बारह क्रोडी द्रव्य और बारह गोकुल अपने कबजे कर महाशतकके साथमें भोगविलास करती हूर स्वतंत्रतासे रहने लगी । स्वतंत्रता होनेसे रेवंतीनि, गाथापतिने मांस मदिरा आदि भक्षण कराना भी प्रारंभ कर दीया।
एक समय राजगृह नगरके अन्दर श्रेणिक राजाने अमारी पडह बजवाया था कि किसी भी जीवको कोई भी मारने नहीं पावे। यह बात सुनके रेवंतीने अपने गुप्त मनुष्योंको बोलाके कहा कि तुम जावो मेरे गायोंके गोकुलसे प्रतिदिन दोय दोय घोणा (वाछरू ) मेरेको ला दीया करो। वह मनुष्य प्रतिदिन दोय दोय घाछरू रेवंतीको सुप्रत कर देना स्वीकार किया. रेयंती उन्होंका मांस शोला बनाके मदिराके साथ भक्षण कर रही थी।
महाशतक श्रावकसाधिक चौदा वर्ष श्रावक व्रत पालके अ. पने जेष्ट पुत्रको घरभार सुप्रत कर आप पौषधशालामें जाके धर्ममाधन करने लग गया।
इदर रेवंती मंसमदिरादि आचरण करती हुइ कामविकारसे उन्मत्त बनके एक समय पौषधशालमें महाशतक श्रावकके पासमें आइ ओर कामपिडित होके स्वइच्छा श्रृंगारके साथ स्त्रीभाव अर्थात् कामक्रीडाके शब्दोंसे महाशतक श्रावक प्रति बोलती हुइ कि भो महाशतक तुं धर्म पुन्य स्वर्ग और मोक्षका मी हो रहा है, इन्होंकि पिपासा तुमको लग रही है इसकी ही तुमको कंक्षा लग रही है जिससे तुम मेरे साथ मनुष्य सम्बन्धी काम