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आज साफ हृदयसे मेरे भगवानका यथार्थ गुण करता है वास्ते मैं तुझे उतरनेको पांचसो दुकानें और पाटपाटला शय्या संथागकी आज्ञा देता हूं किन्तु धर्मरूप समझके नहीं देता हुं, वास्त जावो कुंभकारकी दुकानों आदि भोगवो (काममें लो)। बस । गोशालो उन्ही दुकानों आदिको उपभोगमें लेता हुवा और भी शकडाल प्रत्ये हेतु युक्ति आदिसे बहुत समझाया । परन्तु जिन्होंने आत्मवस्तु तत्त्वज्ञान कर पहेचान लिया है। उन्होंको मनुष्य तो क्या परन्तु देवता भी समर्थ नहीं है कि एक प्रदेशमात्रमें क्षोभ कर सके। गोशालेकी सर्व कुयुक्तियोंको शकडाल श्रावक न्यायपूर्वक युक्तियों द्वारा नष्ट कर दी। बादमें गोशाला वहांसे विहार कर अन्य क्षेत्रोमें चला गया।
शकडालपुत्र श्रावक बहुत काल तक श्रावक व्रत पालते हुवे । एक दिन पौषधशालामें पौषध किया था. उन्ही समय आधी रात्रिमें एक देव आया, और चुलगी पिताकी माफीक तीन पुत्रका प्रत्येकका नौ नौ खंड किया, और चोथीवार अग्रमित्ता भार्या जो धर्मकार्यो में सहायता देती थी उन्होंको मारणेका देवने दो तीन दफे कहा तब शकडा. लने अनार्य समझके पकडनेको उठा यावत् अग्रमित्ता भार्या कोलाहल सुन सर्व पूर्ववत् साढाचौदा वर्ष गृहस्थावासमें श्रावक व्रत, माढापांच वर्ष प्रतिमा अन्तिम आलोचनापूर्वक एक मासका 'अनशन कर समाधिसहित काल कर सौधर्म देवलोकके आरूणभूत वैमानमें च्यार पल्योपमकी स्थितिवाला देवता हुवा। वहांसे
आयुष्य पूर्ण कर महाविदेह क्षेत्रमें उत्तम जाती-कुलमें उत्पन्न हो . फीर दीक्षा लेके केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष जावेगा ॥ इतिशम् ।।