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शकडालने कहा कि कौन महा निर्जामक ? - गोशालाने कहा भगवान् वीरप्रभु महा निर्जामक है।। शकडालने कहा किस कारणसे !
गोसालाने कहा कि संसार समुद्र में बहुतसा जीव दुबते हुवे को भगवान् वीरप्रभु धर्मरूपी नावमें बेठाके नितिपुरीके सन्मुख कर देते है वास्ते भगवान् वीरप्रभु महा निर्जामक है।
शकडाल बोला कि हे गोशाला ! इस बखत तुं मेरे भगवानका गुणकीर्तन कर रहा है यथा गुण करनेसे तुं नितिज्ञ है विज्ञानवन्त है तो क्या हमारे भगवान वीरभुके साथ विवाद ( शाखार्थ ) कर सकेमा ?
गोशालाने कहा कि मैं भगवान वीरप्रभुके साथ विवाद करनेको समर्थ नहीं हुं।
शकडाल बोला कि किस कारणसे असमर्थ है।
गोशाला बोला कि हे शकडाल ! जैसे कोइ युवक मनुष्य बलवान यावत् विज्ञानवन्त कलाकौशल्यमें निपुण मजबुत स्थिर शरीरवाला होता है वह मनुष्य एलक, सूवर, कुकड, तीतर, भटेवर, लाहाग, पारवा, काग, जलकागादि पशुवोंके हाथ, पग. पांख, पुच्छ, श्रृंग, चर्म, रोम आदि जो जो अवयव पकडते है वह मजबुत ही पकडते है । इसी माफीक भगवान वीरप्रभु मेरे प्रश्न हेतु वगरणादि जो जो पकडते है उन्हीमें फीर मुझे बोलनेका अवकाश नहीं रहते है। अर्थात् उन्होंके आगे मैं कोनसी चीज हुँ । वास्ते हे शकडाल ! मैं तुमारे धर्माचार्य भगवान वीरप्रभुने साथ विवाद करनेको असमर्थ हुँ ।
यह सुनके शकडालपुत्र श्रावक बोला कि हे गोशाला! तुं