SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तकी आलोचना कर प्रायश्चित लेना चाहिये । आनन्दने कहा कि हे भगवान ! क्या यथा वस्तु देखे उतना कहनेवालेको प्रायश्चित आता है अर्थात क्या सत्य बोलनेवालोंकोभी प्रायश्चित आता है। गौतम बोला कि हे आनन्द सत्य बोलनेवालोंको प्रायश्चित नहीं आता है। आनन्दने कहा कि सत्य बोलनेवालोंको प्रायश्चित नहीं आता हो तो हे भगवान! आपही इस स्थानको आलोचन कर प्रायश्चित लो। इतना सुन गौतमस्वामिको शंका हुइ । तब सीधाही भगवानके पास जाके सर्व वार्ता कही। भगवानने फरमाया कि हे गौतम तुमही इस वातकी आलोचना करो। गौतमस्वामि आलोचना करके आनंद श्रावकके पास आये और क्षमत्क्षामणा करके अपने स्थानपर गमन करते हुवे । आनन्द श्रावकने साढे चौदह वर्ष श्रावक व्रत पाला, साढे पांच वर्ष प्रतिमाको पालन किया अन्तमें एक मासका अनशन कर समाधि संयुक्त कालकर सौधर्म नामका देवलोकमें अरूणवैमानमें च्यार पल्योपमके स्थितिवाला देव हुवा। उन्ही देवताका भव आयुष्य स्थितिको पुर्ण कर वहांसे महाविदेह क्षेत्रमें अच्छे उत्तम जाति-कुलके अन्दर जन्म धारण कर दृढपइन्नेकी माफीक केवली धर्मको स्वीकार कर अनेक प्रकारके तपसंयमसे कमे क्षय कर केवळज्ञान प्राप्त कर मोक्षम जावेगा। इसी माफीक श्रावकमर्गकोभी अपने आत्म कल्याण करना । शम इति आनन्द श्रावकाधिकार संक्षिप्त सार समाप्तम् ।
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy