SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बलाक और अधी रत्नप्रभा नरकके लोलुच पात्थडाके चौरासी हजार वर्षों की स्थितिवाले नरकावासको देखने लग गया। . उस समय भगवान वीरप्रभु दुतिपलासोद्यानमें पधारे । उन्हों के समीप रहनेवाले गौतमस्वामि जिन्होंका शरीर गौर वर्ण, प्रथम संहनेन संस्थान, सात हाथ देहमान, च्यार ज्ञान चौदहपूर्व पारगामि, छठतपकी नपश्चर्या करनेवाले एक ममय छठतपके पारणे भगवानकी आज्ञा लेके वाणीयाग्राम नगरमे समुदाणी भिक्षा कर कोल्लाक मनिवेशके पास होके पीछा भगवानके पास आ रहे थे। इतने में गौतमने सुना कि भगवान् वीरप्रभुका शिष्य आनन्द श्रावक अनशन किया है यह बात सुन गौतमस्वामि आनन्दके पास गये । आनन्दने भी गौतमस्वाभिको आते हुवे देखके हर्षके साथ वन्दन-नमस्कार किया और बोला कि हे भगवान ! मेरी शक्ति नहीं है वास्ते आप अपना चरणकमल नजीक क रावे।ताके मैं आपके चरणकमलोंका स्पर्श कर मेरा आत्माको पवित्र करूं । तब गौतमस्वामिने अपना चरणकमल आनन्दकी तर्फ कीया आनन्दने अपने मस्तकसे गौतमस्वामिके चरण स्पर्श कर अपना जन्म पवित्र किया । आनन्दने प्रश्न किया कि हे भगवान गृहावा. समें रहा हुवा गृहस्थोंको अवधिज्ञान होता है ? गौतमस्वामिने उत्तर दिया कि हे आनन्द गृहस्योकोभी अवधिज्ञान होता है। आनन्द बोला कि हे भगवान मुझे अवधिज्ञान हुवा है जिसको ज. रिये मैं पुर्व पश्चिम और दक्षिण इन्ही तीनों दिशा लवणसमुद्र में पांचसो पांचसो योजन तथा उत्तर दिशामें चुल हेमवन्त पर्वत तक उर्ध्व सौधर्मकल्प, अधो रत्नप्रभा नरकका लोलुच पात्थडा देखता 'हुँ। यह सुनके गौतम स्वामि बोलेकि हे आनन्द! गृहस्थको इतना विस्तारवाला अधिज्ञान नही होता है धास्ते हे आनन्द ! इस बा
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy