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पीच्छी उदेरी संकुटी अनापराधी' आगार होते हैं वह देखो जैन नियमावलीसे।
(२) दूसरे स्थूल मृषाबाद-तीव्र राग द्वेष संक्लेषोत्पन्न कर. नेवाला मृषाबाद तथा राजदंडे या लोकभंडे ऐसा मृषाबाद बोलनेका त्याग जावजीव तक दोय करण और तीन योगसे पूर्ववत् ।
(३) तीसरे स्थूल अदत्तादान-परद्रव्य हरन करना, क्षेत्र क्षणादिका त्याग जावजीवतक दोयकरण और तीन योगसे।
(४) चोथे स्थूल मैथुन-स्वदारा संतोष जिसमें आनन्दने अपनी परणी हुई सिवानन्दा भार्या रखके शेष मैथुनका त्याग कियाथा।
(4) पांचमें स्थूल परिग्रहका परिमाण करना। (१) सुवर्ण, रूपेके परिमाणमें बारह कोड जिसमें च्यार कोड धरतीमें, च्यारकोड व्यापारमें, च्यार क्रोड घरमें आभूषण व. खादि घर विक्रीम। इन्होंके सिवाय सर्व 'त्याग किया। (२) चतुष्पदके परिमाणमें च्यारवर्ग अर्थात् चालीस हजार गौ(गायों) के सिवाय सर्व, त्याग किये (३) भूमिकाके परिमाणमें पांचसो हल जमीन रखी शेषभूमिका परिमाण किया। (४)
१ जा रखे हुवे व्यापारमें धनवद्धि होती हैं वह पर्व अपनीही मर्योदामें मानी जातीथी। ..• च्यार गोकल ( वर्ग ) की वृद्धि हो वह इसी मर्यादामें हैं।
३ दशहाथ परिमाण एक वांस और बीस वांस परिमाणका एक नियत और सौ नियतका एक हल एसे पांचम हल जमीन रखीथी उन्हों के १२५० गाउ होता है। बस, छलावतकी मर्यादाभी इसी भूमीकाम आगईथी वास्ते छठा व्रतका अलापक अलग नही कहा हैं । किन्नु अतिचार छठे व्रतका अलग कहा है । और अनन्दीकी सिंध (कविता) में ५०० हलवत खडते हैं ऐसा भी लिखा हैं । अगर पांचसो हल खेती समझी