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________________ I हर्ष वार्तालाप कर रहे हैं कि अहो ! देवानुप्रिय ! यथा रूपके अ रिहंत भगवन्तां नाम मात्र श्रवण करनेसे ही महाफल होता है. वही श्रमण भगवान महावीर प्रभुका पधारना आज दुतीपलास नामके उद्यानमें हुवा है तो इसके लिये कहनाही क्या है । चलो भगवन्तको वन्दन- नमस्कार करके श्री मुख से देशना श्रवण कर प्रश्नादि करके वस्तुका निर्णय करें। ऐसा विचार करके सब लोक अपने २ घर जाके स्नान कर वस्त्राभूषण जो बहू मुल्यके थे वे धारण कीये । और शिरपर छत्र धराते हुवे कितनेक गज, अश्व, रथादिपर और कितनेक पैदल जाने को तैयार हो रहेथे। इतने में जयशत्रु राजाको वनपालकने खबर दीकि आप जिनके दर्शनकी अभिलाषा करतेथे वे परमेश्वर वीरप्रभु उद्यानमें पधारे हैं। यह सुनके राजाने उस वनपालकको संतोषित कर बहुत द्रव्य इनाम दिया और स्वयम चार प्रकारकी सेना तैयार कर बहुत से मनुष्यों के परिवारसे कोणक राजाकी माफीक नगरश्रृंगार के बड़े ही हर्ष - उत्साह और आडम्बरके साथ भगवानको वन्दन करनेको गया । समोसरण में प्रवेश करते ही प्रथम पांच प्रकारके अभिगम-विनय करते हुवे भगवानके पास पहुंच गये । राजा और नगर निवासी लोक भगवानको प्रदक्षिणा दे वन्दननमस्कार कर अपने २ योग्य स्थान पर बैठ गये । आनन्द गाथापति भी इस वातको श्रवण करते ही स्नानमज्जन कर शरीर पर अच्छे २ बहुमूल्य वस्त्राभूषण धारण कर शिरपर छत्र धराते हुवे और बहुतसे मनुष्यवृन्द के परिवार से भगवानको वन्दन करने को आये । वन्दन- नमस्कार कर योग्य स्थान पर बैठ गया । भगवान ने भी उस विशाल पर्षदाको धर्मदेशना देना प्रारंभ
SR No.034234
Book TitleShighra Bodh Part 16 To 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRavatmal Bhabhutmal Shah
Publication Year1922
Total Pages424
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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