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।। श्री रत्नप्रभसरीश्वर सद्गुरुभ्यो नमः शीघ्रबोध या थोकमा प्रबन्ध
भाग १७वा.
-**-- देवोऽनेक भवार्जिताऽर्जित महा पाप प्रदीपानलो। देवः सिद्धिवध विशाल हृदयालंकार हारोपमः ।। देवोऽष्टादशदोष सिंधुरघटा निर्भद पंचाननो । भव्यानां विदधातु वांछित फलं, श्री वीतरागो जिनः ॥१॥
श्री उपासक दशांग सूत्र अध्ययन १
(आनंद श्रावकाधिकार) चोथे आरके अन्तिम समयकी बात है कि इस भारतभूमीको अपनी ऊंची २ ध्वजा पताकाओं और सुन्दर प्रसादके मनोहर शिखरोंसे गगनमंडलको चुम्बन करता हुवा अनेक प्रकारके धन, शान्य और मनुष्यों के परिवारसे समृद्ध ऐसा वाणी य ग्राम नामका