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( ७५ ) वि स्वभावसे निर्मल, सचिदानंद हैं परंतु पर प्रयोग कषाय में प्रणमणेसे कषाई कहलाता है यह उपचरित नयकी अपेक्षा हैं, इसका विवरण इस थोकडेद्वारा कहा जायगा वह परिणाम दो प्रकारके होते हैं. (१) जीव परिणाम (२) अजीव परिणाम । हे भगवन् ! जीव परिणाम कितने प्रकारके हैं ? जीव परिणाम दश प्रकार के है यथा-(१) गति परिणाम (२) इन्द्रिय ० (३) कषाय० (४) लेश्या० (५) योग० (६) उपयोगः (७) ज्ञान (८) दर्शन० (९) चारित्र० (१०) वेद० ये दश द्वार चौवीस पंरक पर उतारे जावेगे।
(१) गति परिणामके ४ भेद हैं-(१) नरकगति (२) तियंचगति (३) मनुष्य (४) और देवगति. : (२) इन्द्रिय परि० के ५ भेद हैं=(१) श्रोत्रेन्द्रिय (२) बहु० (३) घाण० (४) रस० (५) और स्पर्शेन्द्रिय,
(३) कषाय परि० के ४ भेद हैं क्रोध, मान, माया और लोभ ___(४) लेश्या परि०के ६ भेद हैं=(१) कृष्ण, (२) नील,
(३) कापोत, (४) तेजो, (५) पद्म (६) शुक्ल. .(१) योग परि० के ३ भेद हैं-(१) मनयोग, (२) पचन. योग और (३) काययोग.
(६) उपयोग परि० के २ भेद हैं-साकार और अनाकार. .. (७) ज्ञान परि०के ८ भेद हैं-मतिज्ञान, श्रुति० अवधि० मनपर्यव० केवल मतिप्रज्ञान, श्रुतिमझान और विमंगज्ञान