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(७०) पहिला वर्गमूल सालहे हुवा और दूसरा सोलहका वर्गमूल चार हुवा और तीसरा चारका वर्गमूल दो हुवा । यहां पहलेसे और दुसरेसे गुणा करना है इसलिये पहिला वर्गमूल १६ और दूसरा ४को परस्पर गुणा करनेसे ६४ हुवे इतने वैक्रिय शरीर हैं अर्थात् विषमसुचि अंगुल के प्रदेशका वर्गमूल करके प्रथम वर्ग: मूलको दूसरे वर्गमूलसे गुणा करे उतना हैं और वे भी असं. ख्याते होते हैं और वैक्रीय शरीरका मुलगा अनन्ते हैं । समुचयवत् तेजस, कर्मणका बंधेलगा वैक्रीयवत् और मूकलेगा समुच्चयवत्.
असुरकुमार देवताओंमें औदारिक आहारकका बंधेलगा नहीं हैं. मूकेलगा अनन्ते हैं । समुचयवत् और वैक्रीयंका दो भेद, (१) बंधेलगा, (२) मूकलेगा जिसमें बंधेलगा असंख्याते हैं. कालसे असंख्याती उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी क्षेत्रसे ७ राजघन* चौतराकीजे जिसकी श्रेणी परतर एक प्रदेशीके असंख्यातमें भाग क्षेत्रसे विषम सूची अंगुलमें जितना प्रदेश ( असंख्याता) आवे
* घन एटले चारो बाजु लंबो चोडो माप में बराबर होवो जोइए.
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सातराज
घन चौतरो
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