________________
( ६८ ) अनंता है, परन्तु साधारण अनन्तो जीव भी एक ही शरीरके बंधक है वस्ते अनन्त जीवोंका भी असंख्यात ही शरीर हैं।
(२) मुकेलगा-सौदारिक शरीरके मुकेलगा अनन्त शरीर हैं, वे कितना अनन्ते हैं ? एकेक समय एकेक औदारिक शरीरका मुकेलगा निकाले तो अनन्ती उत्सर्पिणी, भवसर्पिणी व्यतीत हो जाय । क्षेत्रसे-एकेक औदारिक शरीरका मुकेलगाको एकेक आकाशप्रदेश पर रखे तो सम्पूर्ण लोक और लोक जैसे अनन्ते लोक पूर्ण हो जाय । द्रव्यसे-अमव्यसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तमें भाग इतने औदारिकके मुकेलगा हैं। . . (२) वैक्रीय शरीरका दो भेद-एक बंधेलगा, दूसरा मुकेलगा। जिसमें बंधलगा असंख्यात है । एकेक समय एकेक वैक्रीय शरीर निकाले तो असंख्याती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी व्यतीत हो । क्षेत्रसे-चौदह राजलोका घन चौतरा करने पर सात राज लम्बा और सात राज चौडा होता है. (देखो शीघ्रबोध माग ८) उसके उपरके परतरकी एकप्रदेशी श्रेणी है-जिसके असंख्यातमें भागमें जितने आकाशप्रदेश आवे उतने वैक्रीय शरीर के बंधेलगा हैं दूसरे मुकेलगा अनन्ते हैं औदारिक शरीरवत् ।
(३) आहारक शरीरका दो भेद-बंधेलगा और मुकेलगा. जिसमें बंधेलगा स्यात् मिले स्यात् न मिले. अगर मिले तो जघन्य १-२-३ यावत् उत्कृष्ट प्रत्येक हजार. मकेलगा अनंते औदारिक शरीरवत् , क्योंकि भूतकाल अनन्त हैं उसमें अनन्ते जीवोंने आहारक शरीर करके छोडा हैं। .