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(६६) (८) वर्ण, गंध, रस, स्पर्शके २० बोलोंकी अपेक्षा नारकी चर्म है या अचर्म है ? स्यात् चर्म है स्यात् भचर्म है एवं २४ दंडक भी समझ लेना । घणा जीवोंकी अपेक्षा चर्म भी घणा और अचर्म भी घणा।
सेव भंते सेवं भंते तमेव सच्चम् ।
थोकडा नंबर. १४७ सूत्र श्रीपन्नवणाजी पद ११
(पांच शरीर ) ___ जीव अनादिकालसे इस घोर संसारके अन्दर परिभ्रमण कर रहा है, जिन्हीका मूल कारण जीव स्वगुणोंको छोडके पर. गुणों (पुद्गलोमें) में रमणता करते हुवे पुराणे संयोगको छोडते है और नये नये संयोगको धारण करते हैं । "संजोगा मूल जीवाणं पत्तो दुःखं परंपरा " सबसे निकट संबन्ध जीवके शरीरसे है इन्ही शरीरके लिये चैतन्य इतना तो विचारशून्य बन जाता है कि उचित, अनोचित, हिताहित, भक्षाभक्षका भी भान नहीं रहता है। परन्तु यह ख्याल नहीं है कि इस जीवने ऐसा नासमान कितने शरीर कीया होगा वह इस थोकडेद्वारा बताये जावेगा ।
शरीर पांच प्रकारका है यथा(१) औदारिक शरीर-हाड-मांसादि संयुक्त (२) वैक्रीय शरीर-हाड-मांस रहित कर्पूर या पाराक्त (३) माहारिक शरीर-पूर्वधर मुनियों के होता है :