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(४२ ) थोकडा ० १४०
श्री पनत्रणासूत्र पद ५ ( अजीवपर्यव). थोकडा नं० १३७ में जो जीव पर्यवकी परिभाषा बतलाई है उसी परिभाषासे इस थोकडाको समझ लेना इसमें उपयोग १२ नहीं है क्योंकि उपयोग जीवका गुण है अजीवका नहीं।
हे भगवान ! अजीव पर्यव क्या संख्याते, असंख्याते या अनंते हैं ? गौतम ! संख्याते, असंख्याते नहीं किन्तु अनंते हैं। क्योंकि अजीव पांच प्रकारके है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, भाकाशास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और काल जिसमें धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकायके असंख्यात २ प्रदेश है । और आकाशास्ति. काय और पुद्गलास्तिकायके अनंत प्रदेश हैं तथा कालके भी अनंते समय है और एकेक प्रदेशके अंदर अगुरुनघुपर्याय अनंती २ हैं इसलिये अनंते पर्यव हैं। यहां पर मुख्यता पुद्गलास्तिकायकी ही व्याख्या समझनी । और उसीकों ही मागे बतलायेंगे।
अजीव पर्यवकों शास्त्रकारने दशद्वार करके बतलाये है। (१) द्रव्य (२) क्षेत्र (३) काल ( ४ ) भाव (५) अवगाहना (६) स्थिति (७) भाव (८) प्रदेशअवगाहमा (६) प्र०स्थिति (१०) १०माव ।