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.. इतने में मौतमत्वामीको प्रश्न उत्पन्न हुई। वे मी मममनले पास आये और वंदन नमस्कार करके बोले ! . . . .
(५०) हे भगवान । लोक स्थिति कितने प्रकारको है ?
(उ०) हे गौतम ! लोकस्थिति आठ प्रकारको है । यथा . (१) आकाशके आधारसे वायु रहा हुवा है अर्थात मास सके आधार तृण वायु है और तृणवायुके आधार धनवायु है।
(२) वायुके आधारसे पाणी रहा है (घनोददि) । (३) पाणी के आधार पृथ्वी रही हुई है अर्थात् भो नरक पिंड है वह बचा धनं माफीक पाणोके आधार रहा हुवा है। (४) पृथ्वीके आधार बस स्थावर जीव रहे हुवे हैं।
(५) अनीव-जीवोंका संग्रह रहा उपचरितनयापेक्षा भी । रादि अनीव जीवोंको संग्रह कीया है।
(६) जीव कोकों संग्रहकर रखा है। ..
(७) अनीवकों जीव संग्रह करता है अर्थात् जीव भाषामन पणे पुद्गलोंको संग्रह करता है।
(८) जीव कर्मोको संग्रह करता है। (प्र) हे भगवान । यह लोक स्थिति कीस प्रकारसे है।
(उ) हे गौतम । जेसे कोई चमडे की मसक वायुकाव भरके उपरका मुहपके डोरेसे बन्ध करदे । और उसी मसकके मध्य भागने पके होरासे कसके बांध दे फीर उपरका डोरा खोलके माधे भागकि चायुको निकालके उसके बदले पानी भरके उपरका मुह बांको विचमें नो डोरी बांधी शो उसको पी सोको वा वायुके उपर