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(३) आक शस्तिकाब जो जीवाजीवों स्थान देती है। (४) शरीर रहीत जीव को नहीं देख शक्ता है ? (५) परमाणु पौदगल कोनही देख शक्ता है ! (६) शब्दके पौदंगल कोनही देख शक्ता है ? (७) गन्धके पौदगल कोनही देख शक्ता है ! (८) यह भव्य है या अभव है , (९) इसी भवमें मोक्ष जावेगा या नही मावेगा? ..
(१०) यह जीव तीर्थकर होगा या नही होगा ? - इन्हीं १० बोलोंको छदमस्थ नहीं जाने, परन्तु देवी भगवान् जान शक्ते है वास्ते हे प्रदेशी तु समझ ले जीव और शरीर अलग अलग है।
(९) पश्न-हे भगवान आपके शासनमें सर्व जीव एक ही सारखा-बराबर माने गये है तो यह प्रयक्ष लोकमें हस्ती महाकाल बाला होता है जिन्होंके महारम्भ क्रिय-कर्म-आश्रव देखने में पाते है और कुंथवेका स्वरूप शरीर है और उन्होंके स्वल्पारम्भ किया-कर्म-अश्रय देखने में आते है तो फोर जीव बराबर केसे माना नावे वास्ते मेरा माना हुवा ही तत्व ठीक है ? .. (३०) हे प्रदेश हस्ती और कुंथवेका बीवतों सदी है. पान्तु जीवों के पुन्य पापकी प्रकृतियों भिन्न भिन्न होनेसे शरीर न्यूनाधिक होता है जेसेकि एक कुडागशाला-गुप्तघर होता है। जिनके अन्दर एक दीपक कर दिया जाब और उनोंके उपर का विस्तारवाला दाद देर ही दान प्रकाश उन्हीं उसके अन्दर ही पडेगा और उन्हीसे कुच्छ कम स होवा में