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माना हुवा ठीक ही है कि जीव और शरीर एक ही है अर्थात् मांचतत्वसे यह पुतला बना हुवा है जब पांचोतत्व अपने २ रूपमें मील जाते है तब पुतला विवास हो जाता है यह मेरी मानता ठीक है !
. (उत्तर) हे राजन् कोई मनुष्य स्नान कर चंदनादि सुगन्ध क्दासे शरीर लेपन करके देव पूजन करनेको जा रहा हैं, रस्तेमें कोई पाखाना (टटी) में उभा हुवा मनुष्य उन्हीं देव पूजन करनेकों जाते हुवे मनुष्यकों पाखानेमें बोलावे तो जा शक्ता है ? नही भगवान इस दुर्गन्धके स्थानमें वह केसे जावे अर्थात् नही नावे । हे राजन् वह दुर्गन्धके स्थान पर जाना नही इच्छता है तो देवताओंतों परम् आनंदमें उत्तम पदार्थोके भोग विलासमें मग्न हो रहे है इन्ही मनुष्य लोक कि दुर्गन्ध ४००-५०० योजन उर्ध्व जाती है वास्ते देवता मनुष्य लोकमें आना नही चाहते है। हे राजन्
और भी सुन देवता मनुष्य लोकमें मानेकि अभिलाषा करते भी च्यार कारणोंसे नही माशक्ते है यथा
(१) तत्कालके उत्पन्न हुवे देवताओंके मनुष्योंका संबंध छुट जाता है (विस्मृत) और वहां देव देवीयोंसे नया संबन्ध हो माते है इसीसे देवता आ नही शक्ता है ।
(२) तत्कालका उत्पन्न हुवा देवता-देवता संबन्धो दिव्य मनोहर काम भोगोंमे मुीत हो जाते है वास्ते यहांके सडन बहन निध्वंसन काम भोगोंका तीस्कार करते है वास्ते आ नही