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(४७) वर्तमान तीर्थंकरोंके शासनको स्वीकार न करे वहां तक केवलज्ञान होवे, वास्ते भगवान के शीश्रमण पार्श्वप्रभुके संतान थे और इस समय शासन भगवान वीर प्रभुका प्रचलित था वह भगवान केशी. श्रमणको केवलज्ञान प्राप्त कि कोशीषसे वीर प्रभुका शासनकों स्वीकार कीया अर्थात् पेहले च्यार महाव्रत रूपी जो धर्म था वहा भगवान गौतमस्वामिके पास पांच महाव्रतरूपी धर्मकों स्वीकार करके तप संयममें अपनी आत्माको लग देनेसे शासन रूपी वृक्ष मे केवलज्ञान रूपी फलको प्राप्ती स्वल्पकालमें ही हो गई थी। भगवान केशीश्रमण केवल पर्याय पालते हुवे चरमश्वासोश्वासका त्याग कर अक्षय सुख रूपी सिद्धपुरपाटनमें अपना स्वराज करने लग गये अर्थात् मोक्ष पधार गये है । इतिशम् ।
प्रश्नोत्तर नम्बर ४ सूत्र श्री रायपसेणीजी
( केशीश्रमण और प्रदेशी राजा) चरम तीर्थकर भगवान वीरप्रभु अपने शिष्य समुदायसे पृथ्वीमंडलको पवित्र करते हुवे अमलकम्पानगरीके अम्रशाल नामके उद्यानमें पधारे थे। उन्ही समय सुरियाभदेव अपनि ऋद्धि सहित भगवान्कों वन्दन करनेकों आया था भगवान्कों वन्दन नमस्कार करके गौतमादि मुनिवरोंके आगे भक्ति पूर्वक ३२ प्रकारके नाटक कर स्वस्थान गमन करता हुवा । तत्पश्चित् भगवान् गौतमस्वामिने प्रश्न किया कि हे करूणासिन्धु यह सुरियामदेव पुर्व भवमें कोनथा कीसनगरमें रहता था और क्या