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(४४) शरीरी मानसी दुःखका अनुभव कर रहे है । जिस्में एक सुन्दर विशाल अनेक गुणागर धर्म नामका द्विप है अगर पाणीका बैगके दुःख देखते हुवे भी इन्ही धर्मद्विपका अवलम्बन कर ले तो इन्ही दुःखोंसे बच शक्ता है । अर्थात् इस धौर संसारके अन्दर जन्म . मृत्यु आदिके दुःखी प्राणीयोंकों सुखी बननेके लिये एक धर्महीका अवलम्बन है और धर्महीसे अक्षय सुखकि प्राप्ती होती है।
हे गौतम थापकि प्रज्ञा बहुत अच्छी है । यह उत्तर मापने ठीक दीया परन्तु एक प्रश्न मुझे और भी पुच्छनेका है।
हे कृपासिन्धु आप अवश्य कृपा करावे ।
(१०) प्रश्न-हे गौतम-महा समुद्र के अन्दर पाणीका वैग (चक्र) वाडाही जोर शौरसे चलता है उन्हीके अन्दर बहुतसे पाणीयों डुबके मृत्यु सरण हो जाते है और उन्ही समुद्र के अन्दर निवास करते हुये, आप नावापरारूढ हो केसे समुद्रों तीर रहे हो।
(उ०) हे भगवान् उन्ही समुद्रके अन्दर नवा दो प्रकारकि है (१) छेद्र सहित कि जिन्होके अन्दर वेठनेसे लोक सुमुद्रमे टुब मरते है (२) छेद्र रहीत कि जिन्होंके अन्दर बेठके आनन्दके साथ समुद्रको तिर सकते है।
(प्र.) हे गौतम--कोनसा समुद्र और कोनसी आपके नावा
(उ०) हे भगवान-संसार रूपी महा समुद्र है। निस्मे औदारीक शरीर रूपी नावा है परन्तु नावामें आश्रवद्वाररूपी छेन्द्र है जो जीव आश्रवद्वार सहित शरीर धारण कीया है वहतों संसार समुद्रमें दुब जाता है और आश्रवद्वार रोक दीया है ऐसा