________________
( २७ )
१०. सातमी ,, १६१ पाठमी ,, १६२ नवमी , १६३ चार अनुत्तर विमान १६४ सर्वार्थसिद्ध विमान ३३ ,,
ऊपरोक्त १६४ बोलोंमें, १ असंज्ञी मनुष्य केवल अपर्याप्ता ही होता हैं वास्ते १६४ बोलों के अपर्याप्ता की स्थिति जघन्य अंतरमुहूर्तकी और उत्कृष्ट भी अन्तरमुहूर्तकी होती है और १६३ बोलों के पर्याप्ता की जघन्य स्थिति अपनीअपनी जघन्य स्थितिमें अंतरमुहूर्त न्युन और उत्कृष्टी अपनीअपनी उ. स्थितिसे अंतरमुहूर्त न्युन, समझना ।
१६४ समुचय बोल ऊपरवत् । १६४ अपर्याप्ता के १६३ पर्याप्ता के ।
स्थितिपदके सर्व ४९१ बोल । सेवं भंते सेवं मंते तमेव सच्चम् ।
थोकडा नं० १३९.
श्री पनवणास्त्र पद ५, पजवा. लोक में पदार्थ दो प्रकारके है जीव और अजीव-जीव भनन्ते है और उनके संक्षिप्तसे ५६३ भेद हैं, जिनका समावेश २४ दंडकमें किया जा सकता हैं । और मजीव भी अनन्त हैं