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( १९ ) विशुद्धता होती है विशुद्ध योगोंसे प्रशस्थ क्रिया करते हुवे चारित्र धर्मकि आराधना होती है।
(१३) प्रश्न- मनकों पापोंसे गुप्त रखनासे क्या फल होता है ? (उ०) मनकों पापोंसे गुप्त रखने से मनका एकत्वपना होता है मनका एकत्वापना होने से जो मन संबन्धी पाप आता था वह रूक गया और मनोगुप्तरूप जो संयम था उन्होंका आराधीक होता है।
(१४) प्रश्न- वचनगुप्ती रखनेसे क्या फक्र होता है ? ( उ० ) वचनकि गुप्ती रखनेसे को प्यार प्रकारकि विकभा करनेसे पाप आता था उन्होंकों रोक दीया और वचनसे जो करने योग ज्ञान ध्यान पठनपाठन स्वद्यायदि कार्यका आराधीक होता है ।
(११) प्रश्न - काय गुप्ती करनेसे क्या फल होता है ? ( उ० ) कायागुप्ती रखनेसे जो काया अयत्नासे हलन चलनादिसे आते हूवे' आश्रवको रोक देता है और विनय व्यवच आसन ध्यानदि कायासे करने योग संयम क्रियाका माराधीक होता है ? (१६) प्रश्न- मनके कल विकलकों मीटाके एकान्त निश्चल ध्यानादि सत्य कार्य में स्थापन करने से क्या फल होता है। ( उ० ) मनको० एकत्वता होती है एकत्वता होनेसे अनुभव ज्ञानपर्यव निर्मक होता है ज्ञानसे जो अनादि कालके मिथ्यात्व पबंद था उन्होंका नाम होता है एसा होनेसे विशुद्ध दर्शनकि प्राप्ती होती है।
(१७) प्रश्न- वचन - सावध क श आदि दोष रहीत स्वपा