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उन्ही पुत्रका जन्म होता है बादमे माताके दुद्ध सपीका आहार करता है फीर नाना प्रकारके त्रसस्थावरोंके शरीरके शुद्गलोंका
आहार कर के अपने शरीरका वर्णगन्ध रस स्पर्श नाना प्रकारका बनाता है । ७५
इसी माफिक जलचार जीव परन्तु जन्मतों पाणीका आहार लेते है । ७६ । एवं खेचर परन्तु जन्मतों माताका । पोखकों आहार लेवे । ७७ । एवं स्थलचर मनुष्यकी माफीक । ७८ । एवं उरपुरी सर्प परन्तु जन्मतों हवा (वायु) कों आहार लेवे । ७६ । एवं भूजपुर भी समझना । ८० ।
वीध्वंस चर्ममे क्रीडा करमीयादि जीव उत्पन्न होता है वह पेहला अपने उत्पन्न स्थानके स्नग्धका आहार लेवे यावत् पूर्ववत् सझना । ८१ । परसेवासे यू लीखादिका । ८२ । मल मूत्रमे समुत्सम जीवोंका । ८३।
त्रसस्थावर जीवोंके शरीरमे वायुकायाके योगसे अपकाय उत्पन्न हुवे पेहला उत्पन्न स्थानके स्नग्धका आहार लेवे शेष पूर्ववत् । ८४।
त्रसस्थावर योनिया उदकमे उदक उत्पन्न होता है ।८५॥ उदक योनियाउदकमे उदक उत्पन्न होता है । ८६ । उदक योनिया उदकमें त्रस प्राणी उत्पन्न होता है । ८७।