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११५ वृक्ष योनियावृक्षौ दश बोल उत्पन्न होते है यथा-मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा, साखा, प्रतिसाखा, पत्र, पुष्प, फल, बीज. यह १० बोल उत्पन्न होते पेहले अपने स्थानके स्निग्धका आहार लेके अपना शरीर बन्धता है बादमें के कायाके जीवोंका मुक्केलगा पुद्गलोंका आहार ले अपने शरीरका वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श नानाप्रकारके बनाते है । ४ ।
पृथ्वी योनिया वृक्षमें अञ्जोरा (एक जातिका वृक्षमें दुसरी जातिका वृक्ष उत्पन्न होता है उन्हीको अञ्जोरा केहते है) उत्पन्न होता है । १। वृक्ष योनियावृक्षमें अञ्जोरा उत्पन्न होता है ।२। अञ्जोरा योनियावृक्षमें अजोरा उत्पन्न होता है ।३। अञ्जोरा योनिया अजोरामें मुलादि १० बोल उत्पन्न होता है । ४ । एवं च्यारों अलापकमें उत्पन्न होते है । पेहले अपने उत्पन्न स्थानके स्निग्धके पुद्गलोंका आहार ले अपना शरीर बन्धते है बादमें छे कायाके शरीरोंके मुक्केलगा पुगलोंका आहार ले अपने शरीरका वर्ण, गन्ध, रस स्पर्श नानाप्रकारके बनाते है।
एवं च्यार अलापक तृण बनास्पतिका एवं च्यार अलापक औषदी ( २४ प्रकारका धन्य ) का एवं च्यार अलापक हरिकायका भावना पूर्ववत् समझना सर्व २० अलापक हूवे।
पृथ्वी योनियावृक्षमें भूइफोडा उत्पन्न होता है भावना पूर्ववत् एवं २१ ।