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१२४ जिनप्रतिमावों है जेसे यह एक अञ्जन गिरिपर एक मन्दिर कहा है इसी माफीक च्यारो अञ्जनगिरिपर च्यार मन्दिर समझना सर्व पदार्थ रत्नमय वढा ही मनोहर है।
प्रत्यक अंजनगिरिपर्वत के च्यारों दिशामे च्यार च्यार वावी है वह वावी एक लक्ष जोजन लम्बी पचास हजार जो० चोडी ओर हजार जोजन कि उडी है पागोतीया तोरणादिसे सुशोभनिक है उन्ही वावी के अन्दर एकेक दद्धिमुख पर्वत है वह पर्वत १००० जो० उडा है ६४००० उचा है दश हजार जोजन मूलसे ले के सीखरतक पहूला विस्तारवाला है पलक संस्थान है । एवं च्यार अञ्जनगिरिके चौतर्फ १६ यात्रीयों है उन्ही के अन्दर १६ दधिमुखापर्वत और १६ पर्वतोंके उपर १६ जिनमंदिर है उन्होका वर्णन अञ्जनगिरि पर्वतोंके उपरका मन्दिर माफीक समझना.
___स्थानायांग वृतिमें प्रत्यक वावी के अन्तरे में दोदो कनकगिार है एवं १६ वावीयों के अन्तरामे ३२ कनकगिरि अर्थात् सूवर्णमय १८० : जोजनका उचा पलंक संस्थान पर्वत है प्रत्य कनकगिरि के उपर एकेक जिनमन्दिर अञ्जनगिरि माफिक है एवं च्यार अञ्जनगिरि १६ दद्विमुखा ३२ कनकगिरि मीलके ५२ पर्वतोंके उपर बावन जिनमन्दिर है ।