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असं० गु० (१३) बादर अप्प० अपर्या० असं० गु० (१४) पादर वायु० अपर्या० असं० गु० (१५) सूक्ष्म० तेऊ० पपर्या. बसं० गु० (१६) सूक्ष्म पृथ्वी० अपर्या० वि० (१७) सूक्ष्मअप्प. अपर्या० वि० (१८) सूक्ष्म वायु० अपर्या० वि० (१९) सूक्ष्म तेऊ० पर्या० सं० गु० (२०) सूक्ष्म पृथ्वी० पर्या० वि० (२१) सूक्ष्म अप्प० पर्या० वि० (२२) सूक्ष्म वायु० पर्या. वि० (२३) सूक्ष्म निगोद अपर्या० असं० गु० (२४) सूक्ष्म निगोद पर्या० सं० गु० (२५) बादर वन० पर्या० अनं० गु० (२६) बादर पर्या०वि० (२७) बादर वन० अपर्या० असं० गु० (२८) बादर अपर्या० वि० (२९) बादर वि० (३०) सूक्ष्म बन० अपर्या० सं० गु० (३१) सूक्ष्म अपर्या० वि० (३२) सूक्ष्म वन० पर्या० सं० (३३) सूक्ष्म पर्या० वि० (३४) सूक्ष्म वि०
[२९] (१) जीव स्तोक (२) पुद्गल अनं० गु० (३) काल अनं० गु० (४) सर्व द्रव्य वि० (५) सर्व प्रदेश अनं० गु० (६) सर्व पर्याय अनं० गु०
सेभंते सेवभंते तमेव सच्चम् ।
थोकडा नं० १३६ - श्री पनवणा सूत्र पद ३, खेताणु वाई ।
लौक तीन प्रकारका है तद्यपि यहां पर लौकके छ विभाग बनाके व्याख्या करते हैं । यथा--
(१) उर्वलोक-ज्योतिषियोंके ऊपर तलेसे लोकान्त तक .सु लोक माना जाता हैं जिसमें बारह देवलोक, कल्बिषिक