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(४) पव्वयपर्वत-जम्बुद्विपमें २६६ पर्वत सास्वता है (२००) कञ्चनगिरिपर्वत-देवकूरू युगलक्षेत्रमें पांच द्रह है उन्ही द्रहके दोनों तटपर दश दश कञ्चनगिरिपर्वत सर्व सुवसमय है दश तटपर १०० पर्वत है इसी माफीक उत्तरकृरू युगलक्षेत्रमें १०० कञ्चनगिरि है एवं २०० ___ (३४) दीर्घवैताडय-चक्रवरतकी ३४ विजय अर्थात महाविदेहकि ३२ विजय एक भरत एक एरभरत एवं ३४ विजयके मध्यभागमें ३४ वैताडयपर्वत है।
(१६) वस्कारपर्वत-महाविदेहक्षेत्रके मध्यभागमें मेरूपवत आजानेसे महाविदहक्षेत्रके शोला शोला विजयरुप दो विभाग हूवे शोला शोला विजयके विचमें सीता सीतोदानदी आजानासे आठ आठ विजयरुप च्यार विभाग हवे उन्हीसे आठ विजयरुप एक विभागके सात अन्तर है जिस्मे च्यार वस्कारपर्वत और तीन अन्तर नदी है एक विभागमें च्यार वस्कारपर्वत है इसी माफीक च्यार विभागमें १६ वस्कारपर्वत है। ___(६) वर्षधरपर्वत-मनुष्य रेहनेका जो ७ क्षेत्र बतलाये है जिन्होके ६ अन्तरोमें छे पर्वत है अथवा सात क्षेत्रोंकि मर्यादा करनेवाले ६ वर्षधरपर्वत है यथा चुलहेमवन्त, महाहे
मवन्त, निषेड, निलवन्त, रूपी, और सीखरीपर्वत इति । .. (४) गजदन्तापर्वत-निषेड और निलवन्तपर्वतके पाससे