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________________ ४५ (२४) सिद्धद्वार - वैमानिक देवोसे निकलके मनुष्यका भवमे आके एक समय १०८ सिद्ध होते हैं एवं देवीसे २० जीव सिद्ध होते हैं. (२५) भवद्वार - वैमानिक देवोंमे जाने पर भी जीव संसारमं भव करे तो जघन्य १२ - ३ उ० संख्याते असंख्याते अनन्ते भव भी कर शक्ता है । (२६) उत्पन्नद्वार हे भगवान् सर्व प्राण भूत जीव सत्व वैमानिक देवता या देवीपणे पूर्व उत्पन्न हवा ! हे गोतम एक वार नहीं किन्तु अनन्त अनन्तिवार उत्पन्न हुवा है कहांतक कि० नौग्रीवैमनक | ओर च्यार अत्तर वैमानमे जाने के बाद संख्याते (२४) भव और सर्वार्थसिद्ध वैमान से एक भवमे निश्वय मोक्ष होता है । (२७) पाव दूतद्वार. ( १ ) स्तोक पांच अन्तर वैमनके व (२) उपरकी त्रिदेव संख्यातगुणा. ( ३ ) मध्यम त्रिके देव ( ३ ) निचेकी त्रिके देव ( ४ ) बारहवा देवलोकके देव " "
SR No.034233
Book TitleShighra Bodh Part 11 To 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1933
Total Pages456
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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