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जम्बुद्विप व्यंतर देव देवीका रूप वैक्रय बना शन है संख्यातकी शक्ति है.
(१६) अवधिद्वार-बाणमित्र देव अवधिज्ञानसे जा २५ जोजन उ० उर्ध्व जोतीषीयोके उपरका तला अधौ पेहली नरक तीर्य संख्यातेद्विप समुद्र.
(१७) परिचारणाद्वार-सर्व देवोंके पाच प्रकारकि परिचारणा है यथा मन, रूप, शब्द, स्पर्श. और कायपरिचारणा अर्थात् मनुष्यकि माफीक भोगविलाश करते है.
(१८) मुखद्वार-- यहा मनुष्यलोकमे कोइ मनुष्य युवक अवस्थामे मनमोहन युवक सुन्दर जोवन रूप लावण्यवानस मादि कर विदेशमें द्रव्यार्थी गया था वहमे मनोइच्छत द्रव्य लाया दोनोंकी परिपक्क जोवन अवस्थामें अवादित मुख भोगवे उन्होंसे व्यंतर देवोंका मुख अनन्तगुण है.
(१६) सिद्धद्वार-वाणमित्रों से निकलक मनुष्यभवकर एक समयमें १० ओर देवीमें निकलकं ५ जीव एक समय मोक्ष जाते है.
(२०) भवद्वार-बाणमित्र देव अगर संमाग्में भत्र करे तो १-२-३ उत्कष्ट अनन्त भव कर शक्त है,
(२१) उत्पन्नहार---सर्व ग्राण भून जीव सत्व बाण मित्र देवतों पणे एकवार नहीं किन्तु अनन्नी अनन्तीवार उत्पन्न