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नहीं, उपशम सम्यक्त्व एक जीवको एक भवमें जघन्य एक वाद उत्कृष्ट दोय वार भावे और घणा भाव अपेक्षा जघन्य दोय वार उत्कृष्ट पांच बार आवे शेष दोय सम्य० एक भवापेक्षा जघन्य एक वार, घणा भवापेक्षा दोय वार और उत्कृष्ट असंख्यात वार आवे । कारण जीवोंके अध्यवशाय क्षोपशमयक भावमें हर समय बदलते रहेते है।
(११) क्षेत्रस्पर्शना द्वार-क्षायक सम्य० सर्व लोक क्षेत्रको स्पर्श करे कारण केवली समुद्घात करते है उन्हीं समय सर्व लोकमें अपना आत्म प्रदेश फेला देते है इसापेक्षा । शेष तीनों सम्यक्त्व सात रान कुच्छ न्यून. क्षेत्र स्पर्श करे।
(१५) अल्पा बहुत्व द्वार (१) स्तोक उपशम सस्यत्व वाले जीव है । (२) वेदक सम्य० वाले जीव संख्याअ गुणे है (३) क्षोपशम सभ्य० वाले जीव असंख्यात गुणे है (४) क्षायक सम्य० वाले अनन्त गुणे है (सिद्धापेक्षा) इति ।
मे मत सेवं भंते तमेव सचम् ।
थोकडा नं० २२...
(बलकि भल्पाबहुत ) .... पूर्वाचायोंके हस्तलिखित प्राचीन पत्रसे (१) स्वोक सुक्ष्म निगोदके अपर्याप्ताका बल (२) बार नियोदके अपर्याप्ताका बल असंख्यातगुरु : (३) मूल निगोदके प्राप्ताका बल, (४) र निनोदके ,