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[६६] (५) तियेच पंचेन्द्रिमें पांच पावे देवतावत् . (१) मनुष्यमें सात पावे (१) कालदरि
वेदनी समुद्घातका काल असंख्याते समयके अन्तर मुहू का एवं कषाय समु मर्णातिक समु० वैक्रिय समु० आहारिक समु। इन प्रत्येक छओं समुद्घातोंका काल अन्तर मुहूर्त अन्तर मुहूर्वका है और केवली समुद्घातका काल माठ समयका है।
(३) चौवीस दंडक एक वचनापेक्षा
एक नारकीके नेरीयेने वेदनी समुद्धात भूतकालमें अनन्ती की है भविष्यमें कोई करेगा कोई नही करेगा जो करेगा वह १-२-३ यावत संख्याती असंख्याती अनन्ती करेगा एवं यावत २४ दंडकमें कहना । कोई जीव नारकीका भविष्य में वेदनी समु. दूधात नहीं करेगा कारण यह प्रश्न नारकीके चर्म समय वालों की अपेक्षाका है फिर मनुष्य में आकर वहां वेदनी समुद्घात न करणे मोक्ष जाने वाला है। . जैसे वेदनी समु० कहा है वैसे ही कषाय, मर्णान्तिक, वै. क्रिय, तेजस समु० भी समझ लेना अर्थात् यह पांचों समु. २४ दंडकमे भूतकालमें अनन्ती की है मविष्यमें जो करेगा वह १-२-३ यावत् संख्याती असंख्याती अनन्नी करेगा।
एक नारकीके नेरियाने आहारिक समुद्घात भूतकालमें स्यात् की स्यात् नहीं की अगर करी है तो १-२-३ भविष्यमें करेगा तो १-२-३४ करेगा एवं यावत् २४ दंडक कहना परन्तु मनुष्यमें भूतकाल अपेक्षा १-२-३-१ करी है कहना । .