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[५७] (१) अभोग-समुजीव आहार लेते है वह जानते हुवे या बनानते हुवे दोनों प्रकारसे लेते है, नरकादि १९ दंडकके जीवों दोनों प्रकार तथा पांच स्थावर अजानते हुवे भी आहार करते है । - (३) आहारके पुद्गल-नारकी आहार करते है वह आहारके पुद्गलोंकों नारकी न देखते है न जानते है कारण नारकी के रोम आहार है और पुद्गलों का बहुत सूक्ष्मपणा होनासे उपयोगकि इतनी तीव्रता नहीं है कि उन्हीं सूक्ष्म पुद्गलोंको जाने या देखे। इसी माकीक १० भुवनपति व्यंतर और जोतीषी देव तथा पांच स्थावर ए रोमाहारी है तथा बेरिन्द्रिय तेन्द्रियके चक्षू अभाव है। चौरिन्द्रिय कितनेक जीव न जाने न देखे परन्तु आहार करे और कितनेक जीव न जाने परन्तु देखे और थाहार करते है । तीर्यच पाचेन्द्रियको च्यार भांगा होते है।
(१) न जाने न देखे परन्तु माहार करे (असंज्ञी नैत्र हीन) (२) न जाने देखे आहार करे ( असंज्ञी नैत्रोंवाला )
(३) जाने न देखे ,, (संज्ञी नेत्र हीन ) .. (४) जाने देखे आहार करे ( संज्ञी नैत्रोंवाला)
इसी माफीक मनुष्यमें भी च्यार भांगा समझना और वैमानिक देव दो प्रकारके है (१) मायावान् वह मिथ्यात्वी (२) अमायवान् सम्यग्द्रीष्टी जो मिथ्यत्ववाला न जाने न देख माहार करे। सम्यग्द्रीष्टीके दो भेद है । (१) अणन्तर उत्पन्न हुवा न जाने न देखे ,, (२) परंपर उत्पन्न हुवा मिन्होंका दो भेद (१) अपर्याप्ता न जाने न देखे० (२) पर्याप्ता जिन्होंका दो भेद है (१) अनो,