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[ ४६ ] जीव और २४ दंडक एक बननापेक्षा पूर्ववत् बहू वचनापेक्षा समु० जीव और पांच स्थावर ये आहारीक घणा और अनाहारीक भी घणा शेष १९ दंडक ये भागा तीन तीन (१७) मिश्र द्रीष्टी समु० जीव और १६ दंडक एक वचन या बहू वचन आहारीकहै तथा सिद्ध भगवान् एक या बहू वचनापेक्षा अनाहारीक है सर्व भांगा ११-१८-१७ कुल १२६ द्वारम्.
(६) संयतिद्वार - संयति समु० जीव ओर मनुष्य एक वचनापेक्षा स्वाताहारीक स्थातनाहारीक ( केवली अपेक्षा ) बहू वचनापेक्षा तीन तीन भागा ६. असंयति सो मिथ्यातिवत् १७ भांगा. संयतासंयति समु० जीव और मनुष्य तथा तीर्यंच पांचेन्द्रिय एक या बहु वचनापेक्षा आहारीक है । नोसंयति नोअसंयति नोसंयतासंयति समु० जीव और सिद्ध भगवान् एक या बहू वचनापेक्षा अनाहारीक है । ६-५७ कूल ६३ भांगा हूवे इतिद्वारम्.
(9) कषायद्वार - सकषाय कोधकषाय मान माया लोभ कषाय प्रत्येकके समु० जीव और चौबीस चौबीस दंडक एक वचनापेक्षा स्वाताहारीक रयातानाहारीक । बहू वचनापेक्षा सकषाय १९ दंडक तीन तीन भांगा १७ क्रोध कषाय छे दंडक में तीन तीन १८, १३ दंडक देवतावों में छे छे भांगा ७८ एवं मान कषाय माया कषाय पांच दंडक में तीन तीन भांगा ११ - १५ नारकी देवतका १४ दंडक छे छे भांगा ८४-८४ एवं लोभ कषाय परन्तु नारकी छे भागां शेष १८ दंडक में तीन तीन भांगा १४ शेष सर्वकषायवे
म० जीव और पांच स्थावरमें आहारीक घणा और अनाहारी