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थोकड़ा नं० ९ श्री पन्नवणा मूत्र पद २३ उ०१
(कर्मप्रकृती) हार-कितनी प्रकृती । कैसे बांघे २ कितने स्थान ३ कितनी प्रकृति वैदे ४ अनुभाग कितने ५
हे भगवान् । कर्मों की प्रकृती कितनी है ! कर्मोकी प्रकृती आठ हैं यथा ज्ञानवर्णीय, दर्शन वर्णीय, वेदनिय, मोहनीय, आयुप्य, नाम, गोत्र और अंतराय.
नरकादि २४ दंडकके जीवोंके कर्म प्रकृती आठ आठ है यावत् वैमानिक.
जीव आठ कमेकी प्रकृती किससे बांधता है ! ज्ञानार्णिय कर्मके उदयसे दर्शनावणिय कर्मकी इच्छा करता है अर्थात ज्ञानावर्णिय कर्मके प्रबल उदय होनसे सत्य वस्तुका ज्ञान नहीं होता इससे सत्य वस्तुको असत्य देखे. यह दर्शनावर्णियकी इच्छा की.
और दर्शनावर्णिय कनके उदयले दर्शन मोहनीय कर्मकी इच्छा हुई अर्थात अपन्यको सत्य कर मानना. इस दर्शन मोहनियसे मिथ्या. बका परलोदय होता है और मिथ्यात्वसे आठों कमीका बंध होता ई इप बाम्ने कमेकेि बंधका मूल कारण मिथ्यात्व है और मिथ्यावका मूल कारण अज्ञान है एवं नरकादि २४ दंडकके जीवोंके आट २ काका बंध समझना ।
ज्ञानावर्णिय कर्मोका बन्ध कितने स्थानपर होता है ? सासे माया लोभ ) द्वेषसे ( क्रोधमान ) इन राग द्वेषकी चार प्रक'तयोंको अर्थात् क्रोधमान माया लोभ इस चंडल चौकड़ीसे ज्ञाना