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श्री रत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला पु० नं० ४७ श्री रत्नप्रभसूरी सद्गुरुभ्यो नमः
अथ श्री
शीघ्रबोध या थोकडा प्रबंध |
भाग १२वां
थोकडा नं० १
सूत्र श्री पन्नवणाजी पद १७ उ० १ ( लेश्या ९ द्वार )
(१) शरीर ( २ ) आहार ( ३ ) उश्वास (४) कर्म (५) वर्षे (६) लेश्या (७) बेदना (८) क्रिया (९) आयुष्य इति ।
(१) शरीर (१) आहार : ३) उश्वास वह तीन द्वार साथमें ही कहते हैं ।
( प्र ) नारकी सर्व बराबर शरीराहारोश्वास वाला है ।
( उ ) नारकी दो प्रकारके हैं (१) महाशरीरा (२) स्वरूप शरीरा जिसमें महाशरीरा नारकी है वह बहुतसे पुद्गलोंका आहार लेते हैं परिणमाते हैं या उश्वास भी बहुत लेते हैं या बारबार पुद्गलोंकों लेते हैं परिणमाते हैं और जो स्वल्प शरीरा नारकी वह स्वरूप पुद्गलोंको लेते हैं परिणमाते हैं या ठेर ठेरके लेते हैं परिणमाते हैं या स्वल्प श्वासोश्वास लेते हैं वास्ते बराबर नहीं हैं।