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थोकडा नम्बर ६७
मूत्रश्री पन्नवणाजी पद ३३ अवधिज्ञानाधिकार भव १ विषय २ संस्थान ३ अभ्यान्तरबाय ४ देशसई ५ हीयमान वृद्धमान अवस्थीत ६ अनुगमि अनानुगमि ७ प्रतिपाति अप्रतिपाति ८।
(१) भव-नारकि देवताघोंको अवधिज्ञान भवप्रत्य होते है और मनुष्य तथा तीर्यच पांचेन्द्रियकों क्षोपशमसे होते है।
(२) विषय-अवधिज्ञान अपनी विषयसे कितने क्षेत्रकों देख सकते है जान सक्ते है। (१) रत्न प्रभा नारकि जघन्य ३॥ गाउ उत्कृष्ट ४ गाउ. (२) शर्करा प्रभा नारकि , ३ , ,, ३॥ , (३) वालुका प्रभा नारकि , २॥ , , ३ , (४) पङ्क प्रमा नारकि , २ ,, , २॥ " (५) धूम प्रभा नारकि , (६। तमः प्रभा नारकि , १ (७) तमस्तमा प्रभा नारकि " ०॥ , १ ,
असुरकुमार के देव न० २५ योजन उ° उर्ध्व लोकमे सौधर्म कल्प अधोलोकमे तीसरी नरक. तीर्यगलोगों असंख्याते द्विप समुद्र अवधिज्ञानसे जाने देखे । नागादि नौजातिके देव० ज०२५ योजन. उ० उर्वलोकमे ज्योतीषीयोंके उपरका तला. अधोलोकमे पहली नरक. तीर्यगलोक संख्याते द्विपसमुद्र. एवंव्यन्तर देव.
और ज्योतिषी देव.ज. उ०संख्यातेद्विप समुद्र जाने. सौधर्मशान कल्पके देव जघन्य आंगुलके असंख्यातमे भाग उ० उर्व स्वध्वजा पताका अधोमे पहली नारक तीर्यगलोकमे असंख्याते द्विपत्तमुद्र