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५ व्याख्यान प्राप्तिः-(भगवती) भगवतीसूत्रमें स्वसमय. परसमय, स्वपरसमय, जीव, अजीव, जीवाजीव, लोक, अलोक, लोकालोक अलग अलग प्रकारका देव, राजा राजर्षि और अनेक प्रकारके संदिग्ध पुरुषोंने पुछे हुवे प्रश्नोंका श्रीजिनभगवान विस्तार पूर्वक कया हुवा उत्तर, सो उत्तर, द्रव्य, गुण, क्षेत्रकाल, पर्याय, प्रदेश और परिणामका अनुगम निक्षेपण, नय, प्रमाण और विविध सुनिपुण उपक्रमपूर्वक यथास्ति भावना प्रतिपाद कहे. निम्हसे लोक और अलोक प्रकाशित है, वह विशाल संसार समुद्र तारनेको समर्थ है, इंद्रपूजित है भव्य लोकोंके हृदयका अभिनंदक हे, अंधकाररूप मेलका नाशक हे, सुठुइष्ट है, दीपमृत है.इहा, मति और बुद्धिका वर्धक है, जीस प्रश्रोंकी संख्या ३६००८ की है जीसमे श्रुतस्कंध इत्यादि शेष यंत्रमें.
६ ज्ञाता धर्मकथासूत्र में-उदाहरण भूत पुरुषोंका नगरो, उद्यानो, चैत्यो, वनखंडो, राजाओ, माता पिता, समवसरणो, धर्माचार्यो, धर्म कथाओ, यहलोकिक और परलौकिक वृद्धि विशेषो भोग परित्यागोप्रव्रज्याओ, श्रुत परिग्रहो, तपो, उपधानो, पर्याओ संलेखणा, भक्त प्रत्याख्यानो पादपोपगमनो, देवलोक्त. गमनो, सुकुलमा प्रत्यवतारो, बोधिलामो और अंतक्रियाओ, इस अंगमें दो श्रुत स्कंध और ओगणीन अध्ययनो है । धर्म कथाका दश वर्ग है जीसमें एक एक धर्मकथामें पांचसो पाँचसो आख्यायिः काओ है । एकेक आख्यायिका पांचसो पांचसो उपाख्यायिकाओ है। एक एक उपाख्यायिकाओमें पांचसो पांचसो आख्यायिकों. पाख्यायिकाओ है यह सर्व मिलके कथा वर्गमे गमिक ( सादश) और अगमिक सामिल है जीस्में गमिक कथाओ छोडके शेष साडा तीन क्रोड कथाओ इस अंगमें है शेष यंत्रमें देखो।
७ उपाशक-दशांग सूत्रमे उपासको (श्रावको) का नगरो, उद्यानो, चैत्यो, वनखंडो, राजाओ, माता पिताओ, समवसरणो,