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तमें भाग उ० प्रत्येक अंगुलकी है। शेष चारोन्द्रिय ज. उ० अंगुल. के असंख्यातमें भाग है भावना तीजे द्वारकी माफक समझना।
[५] अवगाह्याद्वार-एकेकेन्द्रिय असंख्याते २ आकाश प्रदेश अवगाहा है। जिसकी तरतमता दिखाने के लिये अल्पा: बहुत्व कहते है।
[१] सर्वस्तोक चक्षु इन्द्रिय अवगाहा [ २ ] श्रोतेन्द्रिय अ० संख्यातगुणा । [३] घ्राणेन्द्रिय अ० सं० गुणा । [४] रसेन्द्रिय अ० असं० गुणा । [५] स्पर्शेन्द्रिय अ० सं० गुणा।
[६] पुद्गल लागाद्वार-एकेकेन्द्रियके अनन्ते अनन्ते पुद्गल लागा है। जिसकी अल्पाबहुत्व [१] चक्षु इन्द्रिय लागा, सबसे स्तोक [२] श्रोतेन्द्रिय लागा सं• गुणा। [३] घाणेन्द्रिय लागा सं० गु० ४ ] रसेन्द्रिय लागा असं• गु० [५] स्पर्शेन्द्रिय लागा सं० गुरु
[७] अवगाह्या लागाकी-सामल अल्पाबहुत्व-[१] चक्षु इन्द्रिय अवगाहा सबसे स्तोक [ २ ] श्रोतेन्द्रिय अ० सं• गु० [३] घ्राणेन्द्रिय अ० सं० गु० [४] रसेन्द्रिय अ. असं० गु० [५]स्पर्शेन्द्रिय अ० सं० गु० [६ चक्षु इन्द्रिय लागा० अनं० गु० [७ । श्रोतेन्द्रिय लागा सं० गु० [८ } घ्राणेन्द्रिय लागा सं० गु० [९] रसेन्द्रिय लागा असं० गु० [१०] स्पर्शेन्द्रिय लागा सं• गु०
[८] कक्खडा [कर्कश ] गुरुवा [ भारी] द्वार-एकेकेन्द्रियके अनन्ते अनन्ते पुद्गल लागा है। जिसकी अल्पाबहुत्व [१] सबसे स्तोक लागा चक्षु इन्द्रियके [२] श्रोतेन्द्रियके अनन्त गु० ३ ] घ्राणेन्द्रियके अनन्त गु० [४] रसेन्द्रियके अनन्त गु० [५] स्पर्शन्द्रियके अनन्त गु०
[१] लहुया [ हलका ] महुया [ कोमल ] द्वार--एके.